बहुत मुश्किल है.........
वो देखो आ रहा हैं सामने से तूफान का मंजर
मगर वह पेड़ हैं उसका मुकदर हैं खड़े रहना
और कोई उस पेड़ से सीखे मुसीबत में अडे रहना
कि जिसने सीखा है तूफान मे भी खड़े रहना
लेकिन.............................एक बात और भी है
मैं कुछ बड़े लोगो की नीचता से वाकिब हो
बहुत मुश्किल हैं दुनिया मे बड़े बनकर रहना
25 टिप्पणियां:
बहुत मुश्किल है बड़े बनकर रहा। बाकई, बहुत अच्छा लिखा।
वाह!! स्वागत है. नियमित लिखें.
पारुल जी
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया.
अच्छा लगा ....लिखती रहिये..
मैं कुछ बड़े लोगो की नीचता से वाकिब हो
बहुत मुश्किल हैं दुनिया मे बड़े बनकर रहना
vakai .....sachhi baat kahi aapne...
मैं कुछ बड़े लोगो की नीचता से वाकिब हो
बहुत मुश्किल हैं दुनिया मे बड़े बनकर रहना
in lino mein bahut hi gahri bat kah di apne...
good keep it up
apne blog se word verification hata dein
इस राह मे लुटेरे और भी हैं।
शेष फ़िर कभी....
www.kamiyaa.com
बहुत सही कहा आपने...बहुत ही मुश्किल है इस दुनिया में बड़े बनकर रहना
बहुत मुश्किल हैं दुनिया मे बड़े बनकर रहना
bahut sundar......
मगर वह पेड़ हैं उसका मुकदर हैं खड़े रहना
और कोई उस पेड़ से सीखे मुसीबत में अडे रहना
कि जिसने सीखा है तूफान मे भी खड़े रहना ।
प्रेरक और मनभावक पंक्तियाँ हैं, बधाई।
Wah
achhi kavita........
bahut mushkil hai dunia me bade ban kar rahna
kamaal ki rachna hai
"बहुत मुश्किल हैं दुनिया मे बड़े बनकर रहना "
सच है!! कठिन कार्य है!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
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बस हो गया काम !!
वो देखो आ रहा हैं सामने से तूफान का मंजर
मगर वह पेड़ हैं उसका मुकदर हैं खड़े रहना
और कोई उस पेड़ से सीखे मुसीबत में अडे रहना
सुंदर विचार स्वागत है हिन्दी ब्लॉग जगत में निरंतरता बनाए रखें मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
सत्य चिंतन, आभार
आरंभ
ऐसे ही लिखते रहिये एक दिन आप्का ब्लोग भी इतनी अच्छी रचनाओ से बडा हो जायेगा क़तरा-क़तरा
kam shabdon me bahut badi baat kah di,
bahut samvedanshil chintan
'मैं कुछ बड़े लोगो की नीचता से वाकिब हूँ'
लाजवाब
लिखते रहें
ह्म्म, पारूल जी, प्रकृति में हर तरह के क्रिएचर मिलते हैं।
सवाल यह है कि हम किन्हें कितना और कैसे पह्चानते हैं।
शुभकामनाएं।
कम शब्दों में सटीक बात। बधाई। लिखते रहें। लखन विक्रांत की दो पंक्तियाँ आपके लिए-
इतिहास निकलता है मेरी ही कलम से।
कागज की कमी होगी तो चेहरे पे लिख देंगे।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
मुश्किल तो हर जगह है पारुल जी। बड़े बनकर रहना भी और छोटे बनकर रहना भी।
कविता बहुत अच्छी है.
धन्यवाद
मगर वह पेड़ हैं उसका मुकदर हैं खड़े रहना
sundar kavita
िचट्ठाजगत में आपका स्वागत है।
आपकी लेखनशैली अच्छी है। जमकर िलखें। साथ में दूसरों के िलखे पर ताकझांक कर िटप्पिणयां भी छोड़ें।
www.gustakhimaaph.blogspot.com
बशीर बद्र साहब ने कहा है -
" मई इस शहर का बड़ा कैसे बनूँ ,
इतना छोटापन मेरे बस का नही |"
आपका स्वागत है बुद्धिजीविओं के इस जमघट में |
लिखते रहिएगा .........
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं |
From - aajkiaawaaz.blogspot.com
बहुत मुश्किल हैं दुनिया मे बड़े बनकर रहना
achcha likha hai..
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