गुरुवार, 5 अगस्त 2010

पर तुम नहीं लोटे मेरे भाई

ओ मेरे भाई....................कमल
बहुत याद आते हो तुम
पल पल भुलाना तुम्हे मुश्किल हो गया भाई
अकेला छोड़ दिया ऐसे संसार में
जहाँ हैं बहुत गहरी खाई
भाई राखी के दिन याद आती हैं बहुत
कौन से राखी बाँधू तुम्हें किस्से कहू मेरे भाई
जो बात तुममे में थी वो किसी में नहीं मेरे भाई
किस भगवान् से में पूछो तुम्हें
क्यों छोड़ कर चल दिए तुम ऐसे मुझे
याद हैं वो शनिवार की आठ तारीख
हाथ में थी किताब मेरे
पता चला की अब नहीं रहें तुम
नहीं हुआ इस बात पर विश्वाश
गोद में था सर तुम्हारा
लगा की सो रहे हो तुम
बार बार उठाया तुम्हें
पर न उठे तुम
हाथो में उम्र की रेखा देखि
बहुत लम्बी थी वो लाइन
फिर क्यों एसा हो गया
की तुम सोये फिर न उठे मेरे भाई
मेरी आँखों से फिर न निकले आंसू मेरे भाई
जब अर्थी पर तुम्हें लेटया
और छोटे भाई के कंधो ने तुम्हें उठाया
उसके बाद नहीं मिला कोई भी
एसा छोर ..............की
छुपा लो तुम्हें सबकी नज़रो
से मेरे भाई
तुम्हें जाता देख कर मन में
मची एक हलचल
ये क्यों और कैसा हुआ
आज तक न जान पाई मेरे भाई
रोते रोते हो गई शाम
आँखों से निकलने लगे सूखे कतरे
धीरे धीरे सुबकुछ वेसा हो गया
पर तुम नही लोटे मेरे भाई
पर तुम नहीं लोटे मेरे भाई


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