सोमवार, 23 मार्च 2009

बदलाव

बदलाव

था मैं उसका सुदामा

पर वो न बन पाया कृषण

कृषण होते हुए भी कर गया इनकार

कहा मैं नही कृषण

थी तो मैं उसकी द्रोपदी

पर वो न बन पाया कृषण

था तो मैं उसका अर्जुन

पर वो न बन पाया कृषण

मैं था तो उसका बलराम

पर वो न बन पाया कृषण

कृषण होते हुए भी कर गया इनकार

मैं बनी भी उसकी शबरी

पर वो राम होते हुए भी न कर पाया स्वीकार

मैं था तो उसका हनुमान
पर वो राम होते हुए भी न कर पाया स्वीकार

अब मंशा तो यही हैं की बनू रावन और कंस

ताकि वो अब तो बन जाए मेरा कृषण और राम

उद्धार हो जाए उसके हाथो से मेरा

ताकि दुनिया मैं हो उसकी जय जयकार

14 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

hmm....sab samajh main aa gaya....par tumhe ravan ya kans banne ki jarurat nahi...shayad usme hi ram aur krishna jaisi baat nahi!!!

Unknown ने कहा…

bhawo or shabdo ka sundar talmail....aapki kavita ki jaan hai ...banaye rakhen or rahi baat kavita ke sandarbh ki...main bas itna janta hui ki krashna or ram par aakar koi bhi kahani khatam nahi hoti,,,,balki kahani vahan se shuru hoti hai....???
keep doing nice writting.......!!

Jai Ho Mangalmay Ho

parul ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

uske bankar hamesha jina jo apyaye tum ko kewal TUM jankar. tum aapne wajood main yadi koi kami nahi or tab bhi tum ko chahe wo aapnaa kewal badlaw ke bal per.To na badal uske liye jo chahe tumko tum hari pahchan badal kar.


tum samajh sakti ho jo maine kaka. ye.reply tumhare andhj main hain.

Unknown ने कहा…

ravan ya kans banna samsya ka samadhan nahi nahi hai. khudi ko itna buland karo ki har chahat aapke samne gidgidaye.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

मैं सोच रहा हूँ कि लिखूं तो क्या लिखूं....आपने इतना बेलौस सब कुछ कह दिया है कि मेरे जैसा वाचाल भी आज चुप्पा हो गया है...बहुत ही गहरी और सच्ची कविता.......!!................अरे वाह क्या बात कह दी आपने.......कहाँ है आपका हाथ.....ज़रा चूम लूं मैं.....!!..........एक बार तो लगा कि आप बार-बार दुहराव कर रही हो....मगर अंत आते-आते सब कुछ लाज़वाब हो गया सच.....!!आपने तो सोचने पर मजबूर कर दिया...!!

Unknown ने कहा…

this poem is a very,very nice and imosnal

Unknown ने कहा…

this poem is a very,very nice and imosnal

मीत ने कहा…

क्या बात है पारुल जी... आपकी लेखन शैली में बहुत निखर आ गया है...
बहुत सुंदर लिखा है...
भावः तो बहुत ही अच्छा है
मीत

बेनामी ने कहा…

कभी कभी जिन्दगी में ऐसा ही होता है. हम उसके होते हैं, लेकिन वो हमारा नहीं बन पाता..पढ़कर अच्छा लगा

इरशाद अली ने कहा…

बहुत अलग तरह से सोच पाते है आप! विचारों में नविनता के साथ-साथ रोचकता और जिज्ञासा जगाने का जादू भी है। ऐसे ही लिखते रहिये। कृष्ण और राम को प्रतीक बनाकर अपनी बात को कहना, इसके अलावा सकेंतो का प्रयोग कर बात पर ही डटे रहना आपको खूब आता हैं।

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

agar wo krishan ya ram nahi ban paaya to kya hua....agar wo ek insaan ban jaye to bahut hoga...!ram aur krishan banne ki kisi me saamarthya kahan?

barbiteach ने कहा…

you write true that time we find human but that tthing is rare in the world

Prem Farukhabadi ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा है!!!